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शेखावाटी को बोस ने दिया साहस का मंत्र

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010


आजादी के वीर व नेतृत्वकर्ता नेताजी सुभाषचंद्र बोस का शनिवार को जन्म दिवस है और इस दौरान राष्ट्र को उनके प्रेरणादायी योगदान की यादों को लेकर शहरभर में कार्यक्रम आयोजित होंगे। कुशल राजनेता, संकल्प को पूरा करने वाले व राष्ट्रप्रेम के लिए सब कुछ न्यौछावर करने वाले सुभाष बाबू को संपूर्ण भारत में उनके जन्म दिवस पर बड़ी श्रद्घा से याद किया जाता है। इंग्लैंड की सर्वश्रेष्ठ सरकारी सेवा ठुकराने, अपने कैरियर को राष्ट्र को समर्पित करने और अपने चातुर्य से हर भारतीय के मन में बसे नेताजी को उनकी तमाम उपलब्धियों से ज्यादा उनके जुनून के लिए जाना जाता है।
शेखावाटी के मन पर सदैव छाए रहे नेताजी
राजस्थान के क्रांतिवीरों में नेताजी जैसा जुनून शायद ही किसी और समकालीन नेता ने भरा हो। वैसे तो नेताजी कभी सीकर या शेखावाटी नहीं आए, लेकिन सीकर की आजादी के लिए उन्होंने आजादी के लिए लड़ रहे स्थानीय वीरों को साहस का मंत्र दिया था। जयपुर रियासत ने सीकर में आंतरिक हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था, जिसका सीकर के राजा कल्याणसिंह ने विरोध किया और परिणाम स्वरूप जयपुर के राजा मानसिंह ने सीकर पर हमला कर दिया। उस समय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रपति नेताजी थे और उन्होंने सीकर की मदद के लिए कोलकाता के मोहम्मद अली पार्क में मारवाड़ी व सीकर वासियों की विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि सीकर वासियों घबराओ नहीं, हम सबके प्रयास से भारत आजाद होगा और सीकर भी। उनकी याद में 5 जुलाई 1938 को बना शहर का सर्वप्रमुख सुभाष चौक उनकी बलिदानी व शौर्य गाथा को आज भी बयां करता है।

शेखावाटी में लिखा था ‘हे प्रभो आनंददाता’

अरविन्द शर्मा♦ जिस गीत को प्रार्थना में गाकर हम पढ़ाई शुरू करते थे। जिन पंक्तियों को आज भी गुनगुनाने से जोश भर आता है। बड़े-बुजुर्गो को अपनी पढ़ाई का जमाना याद आ जाता है। यह लोकप्रिय पंक्तियां हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमक ो दीजिए.. शेखावाटी में रची गई थी और इन दिनों इनको लिखे 100 साल पूरे हो गए हैं। इस लोकप्रिय प्रार्थना गीत को ज्यादातर लोग जानते हैं पर इसकी रचना शेखावाटी में की गई थी, ऐसा बहुत कम लोगों को पता है। रचनाकार के बारे में तो चुनिंदा लोग ही जानते हैं। उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर के रहवासी कवि स्वर्गीय पंडित राम नरेश त्रिपाठी ने यह प्रार्थना गीत 1910 में फतेहपुर मंे भामाशाह रामदयाल नेवटिया के घर लिखा था। त्रिपाठी तब यहां नेवटिया के घर आए थे। यहां काफी समय तक उन्होंने निवास किया था। नेवटिया ने अपने स्कूल के बच्चों के लिए उनसे प्रार्थना गीत लिखने की गुजारिश की थी।इस गीत को सुनकर नेवटिया इतने रोमांचित हुए कि उन्होंने त्रिपाठी को स्कूल का प्रधानाध्यापक बना दिया।
धन्य है शेखावाटी धरा % त्रिपाठी का शेखावाटी आने का भी दिलचस्प वाकया है। पं. त्रिपाठी नेवटिया परिवार के बिजनेस में हाथ बंटाते थे। इसी सिलसिले में वे कलकत्ता (अब कोलकाता) में थे। वे उदर रोग से इतने पीड़ित हुए कि उनको चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि वे सप्ताहभर तक जीवित रहेंगे। नेवटिया परिवार 1909 में उनको फतेहपुर ले आया। श्रीगुलजारी लाल पांडेय अभिनंदन ग्रंथ में यह उल्लेख है कि यहां बाजरे की रोटी और छाछ पीने से उनका उदर रोग ठीक हो गया। इसके बाद उन्होंने दो विद्यालय, पुस्तकालय-अनाथालय संभाले और साहित्य साधना में रम गए। उन्होंने कई किताबों में शेखावाटी की जीभरकर तारीफ की है।

संभावनाओं के फलक पर शेखावाटी


शेखावाटी में पिछले अर्से से शोध, प्राकृतिक चिकित्सा एवं ग्रामीण पर्यटन के लिए जो माहौल बना है, उससे काफी कुछ करने की गुंजाइशों को पंख लग गए हैं। इससे एक बात तो तय हो गई है कि अब घरेलु पर्यटक शेखावाटी के धार्मिक स्थलों पर जात-जड़ूले और विदेशी पर्यटक ओपन आर्ट गैलरी के रूप विलास को देखने ही ही नहीं आ रहे हैं, बल्कि इन सबसे अलग भी यहां बहुत कुछ ऐसा है, जो दुनियाभार को आकर्षित कर रहा है। इसकी वजह यहां की कुछ खासियतें हैं, जो कि इस क्षेत्र की अलग पहचान और प्रतिष्ठा बना रही हंै। विदेशी सैलानी ग्रामीण संस्कृति से रूबरू होने के साथ-साथ यहां के जलवायु, जैविक उत्पाद, वनस्पतियों और कृषि व संबंद्ध क्षेत्रों में शोध भी कर रहे हैं। यहां घूमने आने वाले विदेशी पर्यटकों का कहना है कि-यहां बहुत कुछ ऐसा है, जो नई उम्मीद की ओर इशारा कर रहा है। अपने खेत पर सैलानियों की मिजमानी करते किसान, फाइव स्टार होटलों के मीनू में शामिल यहां के जैविक उत्पाद और शिक्षा व खेल के क्षेत्र में यहां की प्रतिभाओं के शीर्ष मुकाम इसे अंतरराष्ट्रीय फलक पर बिठाने का ताना-बाना बुनते नजर आते हैं। शेखावाटी की प्राकृतिक व आयुर्वेदिक चिकित्सा भी सात समंदर पार डंका बजा रही है। इतिहास में दर्ज यह तथ्य भी गर्व का अहसास कराता है कि यहां की चिकित्सा पद्धति की ख्याति से प्रभावित हो देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद (जब वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे) ने सीकर में काफी समय रहकर दमा का उपचार करवाया था। आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में शेखावाटी में संभावनाओं का आकाश खुला है। इस संबंध में निजी स्तर पर भी अच्छे प्रयास हुए हैं। इन सुविधाओं को देखते हुए कनाड़ा, इंग्लैंड, रूस, यूएई और फ्रांस आदि देशों से भी काफी संख्या में स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए लोग आते हैं। शोध प्राकृतिक चिकित्सा एवं ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में पनपी संभावनाओं को भुनाने के लिए राज्य सरकार ने विशेष प्रोत्साहन देकर अभिनव पहल की है। निजी क्षेत्र के जोश और जुनून के बीच यदि सरकारी प्रयास ईमानदार रहे तो क्षेत्र के विकास को नई दिशा मिलने में काई संदेश नहीं रहेगा।

 
 
 

उद्योग से कोसों दूर खड़ी कुबरों की जन्मस्थली

उद्योग से कोसों दूर खड़ी कुबरों की जन्मस्थली
शेखावाटी क्षेत्र देशभर में उद्योगों का महाजाल फैलाने वाले उद्योगपतियों की जन्मस्थली होने के बावजूद उद्योगों से वंचित है। इन उद्योगपतियों ने किसी भी विश्ेाष उद्योग लगाने में पहल आज तक नहीं की।यहां के लाखों युवा रोजगार के लिए देशभर में भटकते नजर आते हैं।

मेरी धरती पर जन्म लेगी ब्रह्मोस मिसाइल

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भक्तों की मनोकामना पूरी हनुमान

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हनुमानजी का यह मंदिर राजस्थान के चुरू जिले में है। गांव का नाम सालासर है, इसलिए `सालासरवाले बालाजी' के नाम से इनकी लोक प्रसिद्धि है। बालाजी की यह प्रतिमा बड़ी प्रभावशाली और दाढ़ी-मूंछ से सुशोभित है। read more click photo