अरविन्द शर्मा♦ जिस गीत को प्रार्थना में गाकर हम पढ़ाई शुरू करते थे। जिन पंक्तियों को आज भी गुनगुनाने से जोश भर आता है। बड़े-बुजुर्गो को अपनी पढ़ाई का जमाना याद आ जाता है। यह लोकप्रिय पंक्तियां हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमक ो दीजिए.. शेखावाटी में रची गई थी और इन दिनों इनको लिखे 100 साल पूरे हो गए हैं। इस लोकप्रिय प्रार्थना गीत को ज्यादातर लोग जानते हैं पर इसकी रचना शेखावाटी में की गई थी, ऐसा बहुत कम लोगों को पता है। रचनाकार के बारे में तो चुनिंदा लोग ही जानते हैं। उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर के रहवासी कवि स्वर्गीय पंडित राम नरेश त्रिपाठी ने यह प्रार्थना गीत 1910 में फतेहपुर मंे भामाशाह रामदयाल नेवटिया के घर लिखा था। त्रिपाठी तब यहां नेवटिया के घर आए थे। यहां काफी समय तक उन्होंने निवास किया था। नेवटिया ने अपने स्कूल के बच्चों के लिए उनसे प्रार्थना गीत लिखने की गुजारिश की थी।इस गीत को सुनकर नेवटिया इतने रोमांचित हुए कि उन्होंने त्रिपाठी को स्कूल का प्रधानाध्यापक बना दिया।
धन्य है शेखावाटी धरा % त्रिपाठी का शेखावाटी आने का भी दिलचस्प वाकया है। पं. त्रिपाठी नेवटिया परिवार के बिजनेस में हाथ बंटाते थे। इसी सिलसिले में वे कलकत्ता (अब कोलकाता) में थे। वे उदर रोग से इतने पीड़ित हुए कि उनको चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि वे सप्ताहभर तक जीवित रहेंगे। नेवटिया परिवार 1909 में उनको फतेहपुर ले आया। श्रीगुलजारी लाल पांडेय अभिनंदन ग्रंथ में यह उल्लेख है कि यहां बाजरे की रोटी और छाछ पीने से उनका उदर रोग ठीक हो गया। इसके बाद उन्होंने दो विद्यालय, पुस्तकालय-अनाथालय संभाले और साहित्य साधना में रम गए। उन्होंने कई किताबों में शेखावाटी की जीभरकर तारीफ की है।
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संभावनाओं के फलक पर शेखावाटी
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शेखावाटी में पिछले अर्से से शोध, प्राकृतिक चिकित्सा एवं ग्रामीण पर्यटन के लिए जो माहौल बना है, उससे काफी कुछ करने की गुंजाइशों को पंख लग गए हैं। इससे एक बात तो तय हो गई है कि अब घरेलु पर्यटक शेखावाटी के धार्मिक स्थलों पर जात-जड़ूले और विदेशी पर्यटक ओपन आर्ट गैलरी के रूप विलास को देखने ही ही नहीं आ रहे हैं, बल्कि इन सबसे अलग भी यहां बहुत कुछ ऐसा है, जो दुनियाभार को आकर्षित कर रहा है। Read more |
शेखावाटी में लिखा था ‘हे प्रभो आनंददाता’
शनिवार, 6 फ़रवरी 2010
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